बिजली की नई दरों में जनहित की योजनाओं में छूट जारी रखी गई है, वहीं उद्योगों पर सालाना 850 करोड़ रुपये का भार आने की संभावना है। साथ ही रेलवे, टेलीकाम आदि सेक्टरों को दी जा रही छूट में कटौती की गई है। औद्योगिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने लोड फैक्टर में छूट आदि को समाप्त करने को लेकर इसे उद्योगों पर भार बताया है, वहीं रेलवे, टेलीकाम सेक्टर पर भी बढ़ी हुई दरों का असर आएगा। जनहित की योजनाओं पर आयोग ने छूट जारी रखने का सुझाव दिया है। उच्च दाब स्टील उपभोक्ताओं की विद्युत दरों में 25 पैसे प्रति यूनिट की वृद्धि की गई है साथ ही लागू लोड फैक्टर रिबेट में परिवर्तन करते हुए लोड फैक्टर रिबेट की अधिकतम सीमा 10 प्रतिशत निर्धारित की गई है।
बिजली की नई दरों से उद्योगों पर बढ़ेगा भार, रेलवे-टेलीकाम की छूट में होगी कटौती, जनहित की योजनाओं का मिलता रहेगा लाभबिजली की नई दरों से उद्योगों पर बढ़ेगा भार, रेलवे-टेलीकाम की छूट में होगी कटौती, जनहित की योजनाओं का मिलता रहेगा लाभ राज्य विद्युत उपभोक्ता महासंघ के विशेषज्ञों के मुताबिक राज्य विद्युत वितरण कंपनी के 4,420 करोड़ रुपये के घाटे का अनुमान के परीक्षण के बाद इसे 2,819 करोड़ रुपये पाया गया, जिसमें से 1,000 करोड़ रुपये की पूर्ति राज्य सरकार ने कर दी। बचे 1,819 करोड़ रुपये में से राज्य के स्टील उद्योगों पर लगभग 800-850 करोड़ रुपये और किसान, गरीब, हाफ बिजली बिल आदि को सब्सिडी के रूप में सरकार पर 500-600 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा। इसकी भरपाई उद्योग व अन्य क्षेत्रों में दी गई छूट को कम करने से मिलने वाले राजस्व से होगा।
मोबाइल टावर के ऊर्जा प्रभार में 25 प्रतिशत की कमी
मोबाइल टावर के ऊर्जा प्रभार में 25 प्रतिशत की कमी की गई है। नियामक आयोग के अधिकारियों के मुताबिक 1 अप्रैल 2019 के बाद नक्सल प्रभावित जिलों में संचार व्यवस्था को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से मोबाइल टावर की स्थापना को प्रोत्साहित करते हुए ऊर्जा प्रभार में 50 प्रतिशत की छूट दी जाती थी। इसे घटाकर अब 25 प्रतिशत किया गया है। छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उपभोक्ता महासंघ अध्यक्ष व विद्युत टैरिफ एवं नियामकीय विशेषज्ञ श्याम काबरा ने कहा, लगभग 8.5 प्रतिशत की वृद्धि संतोषजनक कही जा सकती है, क्योंकि पिछले साल राजनीतिक कारणों से बिजली दरों में कोई वृद्धि नहीं हुई थी। फिर भी यदि राज्य विद्युत नियामक हमारे द्वारा दिए गए सुझावा व उपायों पर अमल करता तो शून्य वृद्धि भी संभव थी। लोड फैक्टर में दी गई छूट कम करने से उद्योगों पर सालाना लगभग 850 करोड़ रुपये का भार आएगा।