प्रवासी मजदूरों को जरूरत के हिसाब से वापस लाने की बात कहना राजनीतिक सोच के दिवालिएपन का परिचायक : सोनी

प्रादेशिक मुख्य समाचार

रायपुर। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं संसद सदस्य सुनील सोनी ने कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का विभिन्न प्रदेशों में फँसे प्रवासी मजदूरों को अपनी जरूरत के हिसाब से प्रदेश में वापस लाने की बात कहना उनकी राजनीतिक सोच के दिवालिएपन का परिचायक है। श्री सोनी ने कहा कि कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन में फँसे विभिन्न प्रदेश के प्रवासी मजदूरों की वापसी को लेकर एक मुख्यमंत्री को यह कहना शोभा नहीं देता और इसके लिए उन्हें प्रवासी मजदूरों की भावनाओं के सम्मान के नजरिए से क्षमा मांगनी चाहिए।भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष एवं सांसद श्री सोनी ने कहा कि प्रवासी मजदूर इस प्रदेश की श्रम सम्पदा की अनमोल धरोहर हैं, जिन्हें जरूरत की बात कहकर मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार का गरीब-मजदूर विरोधी राजनीतिक चरित्र प्रदर्शित किया है। प्रवासी मजदूर प्रदेश सरकार की जरूरत के हिसाब से छत्तीसगढ़ वापस नहीं लाए जाएंगे बल्कि उनकी आवश्यकताओं और परेशानियों को ध्यान में रखकर वापस छत्तीसगढ़ लाना प्रदेश सरकार की पहली जिम्मेदारी है। इसके लिए ज्यादा-से-ज्यादा ट्रेनें चलाने की अनुमति प्रदेश सरकार की ओर से दी जानी चाहिए। श्री सोनी ने कहा कि रेल परिचालन की अनुमति को लेकर रेल मंत्री पीयूष गोयल के कथन को झूठ बताकर मुख्यमंत्री बघेल ने अपने एक नए झूठ का रायता फैलाने की नाकाम कोशिश की है। रेल मंत्री ने मुख्यमंत्री बघेल के कथन पर उन्हें इस मुद्दे पर कभी भी चर्चा के लिए आमंत्रित किया है। अब यदि मुख्यमंत्री बघेल में नैतिक साहस है तो वे रेल मंत्री गोयल की चुनौती को स्वीकार करें।
भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष एवं सांसद श्री सोनी ने कटाक्ष कर पूछा है कि मुख्यमंत्री बघेल ने तो खूब दंभ भरते हुए कहा था कि अपने प्रवासी मजदूरों को राज्य सरकार अपने खर्च पर वापस लाएगी तो फिर अब फिर से वे श्रमिकों की वापसी का खर्च आपदा निधि (एसडीआरएफ) से करने की बात क्यों करने लगे हैं? प्रदेश सरकार राजनीतिक नौटंकियों से बाज आकर प्रदेश के हिस्से के 15 प्रतिशत खर्च को वहन करते हुए रेल मंत्रालय को ज्यादा-से-ज्यादा ट्रेनों के परिचालन की अनुमति देकर अपने प्रदेश के सभी प्रवासी मजदूरों की यथाशीघ्र वापसी के लिए ईमानदारी से काम करे। श्री सोनी ने मुख्यमंत्री बघेल को इस बात के लिए भी आड़े हाथों लिया कि उन्हें तीन-चार दिनों से चल रहे ‘निर्मला-अनुराग धारावाहिक’ पल्ले नहीं पड़ रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री अपनी संकीर्ण और राजनीतिक प्रतिशोध के दायरे बाहर अपनी समझ को विकसित करें तो उनको केंद्र सरकार का यह पैकेज पल्ले पड़ेगा। परिवार की वंदना और हर दूसरे दिन केंद्र सरकार से पैसे मांगते रहने वालों के लिए देश की आत्मनिर्भरता की यह क्रांतिकारी पहल समझ से परे ही रहनी है।

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