रायपुर। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने कहा है कि प्रदेश के बाहर जाकर काम करने वाले मजदूरों की घर वापसी के नाम पर प्रदेश कांग्रेस सरकार ने जिस तरह से खेल शुरू किया है, वह बेहद शर्मनाक है। श्री मूणत ने कांग्रेस सरकार द्वारा अपनाई गई व्यवस्था को सवालों में खड़े करते हुए कहा कि राहत पहुंचाने के मुद्दे पर केंद्र सरकार को बदनाम करना छोड़कर कांग्रेस सरकार को मौजूदा संसाधनों से जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। परोपकार की दृष्टि से भलाई इसी में है।
पूर्व मंत्री श्री मूणत ने सवाल किया कि जब प्रदेशभर में पांच सौ से ज्यादा सिटी बसें खड़ी हैं तो क्या प्रदेश सरकार इसका इस्तेमाल मजदूरों की आवाजाही में नहीं कर सकती? कोरोना महामारी के संकट के बीच मजदूरों को गंतव्य स्थल तक पहुंचाने के लिए भला इससे बेहतर क्या विकल्प हो सकता है? मुख्यमंत्री खुद को दूरदर्शी बताते हुए जब-तब ताल ठोंकते रहते हैं, क्या उनकी दूरदर्शिता का यही परिचय है? आज प्रदेश के बाहर से किसी तरह जतन करके पहुंचाने वाले मजदूर पैरों में छाले के साथ अपनी दुर्दशा बंया कर रहे हैं। आए दिन सोशल मीडिया में आ रहीं तस्वीरों से दिल पसीजने लगा है, लेकिन निक्कमी सरकार मजूदरों के लिए कुछ भी तय कर पाने में असफल साबित हो रही है। मुख्यमंत्री के इस सवाल पर कि, मजदूरों को राहत पहुंचाने के लिए क्या सिर्फ ट्रेनों का चलना जरूरी है, श्री मूणत ने पलटवार किया कि क्या प्रदेश में साधन नहीं हैं? वो भी ऐसे श्रमिकों के लिए, जो यहां पहुंच चुके हैं। प्रदेश में पांच सौ से ज्यादा सिटी बसें लॉकडाउन में खड़ी हैं जिनका इस्तेमाल जरूरतमंदों को घर तक पहुंचाने के लिए भी तो हो सकता है।
पूर्व मंत्री श्री मूणत ने कहा कि सच तो यह है कि छत्तीसगढ़ सरकार को न तो मजदूरों की चिंता है और न ही छत्तीसगढ़ की जनता की। इसलिए तो सारा फोकस इन दिनों चिंता छोड़कर शराब की कमाई के रास्ते में कर रखा है। छत्तीसगढ़ की सरकार ने यह भली भांति समझ लिया है जिस सरकार को प्रदेश के विकास के लिए चुना था, वह सरकार वादाखिलाफी करने वाली ही रह गई है। इस उदाहरण ने साफ कर दिया है बेरोजगारों को नौकरी, किसानों को बोनस, कर्मचारियों का नियमितिकरण जैसे अहम मुद्दों पर सरकार ने सिर्फ और सिर्फ ठगने का काम ही किया है। श्री मूणत ने कहा कि मजूदरों के लिए जिस तरह से विकट परिस्थितियां बन गई हैं, एक अहम कदम उठाते हुए प्रदेश में धूल खा रहीं सिटी बसों को तत्परता के साथ मजदूरों को गंतव्य स्थल तक पहुंचाने इस्तेमाल हो सकता है। सीमावर्ती जिलों के लिए यह अब जरूरी भी है। इसके पहले भी कई मजदूर ऐसे हैं जिन्हें सड़क पर चलते हुए जान जोखिम में डालना पड़ा है।