छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ. किरणमयी नायक, सदस्यगण श्रीमती नीता विश्वकर्मा व श्रीमती अर्चना उपाध्याय ने शुक्रवार को छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग के कार्यालय रायपुर में महिला उत्पीड़न से संबंधित प्रकरणों पर सुनवाई की। आयोग की अध्यक्ष डॉ. किरणमयी नायक की अध्यक्षता में आज 251 वीं सुनवाई हुई। रायपुर जिले में कुल 123 वीं जनसुनवाई।
आज की सुनवाई में महिला आयोग अध्यक्ष ने आईआईएम रायपुर को जमकर फटकार लगाई। दरअसल दत्तक ग्रहण लेने वाली मां को आई.आई.एम रायपुर में छुट्टी नहीं देने के बहाने बनाकर आई.आई.एम. रायपुर ने चाइल्ड केयर लीव न देकर दत्तक देने वाली मां को शासकीय सेवक मानने से किया इंकार, भारत के कानूनों को भी मानने से इंकार किया।
आवेदिका ने आयोग में 2 दिन के बच्चे के लिए चाइल्ड एडॉप्श हेतु आई.आई.एम. रायपुर के खिलाफ आयोग में प्रकरण दर्ज करायी थी। प्रकरण बहुत ही स्पष्ट है। आवेदिका विवाह के 17 साल तक निः संतान थी और उसने 20 नवंबर 2023 को शासकी नियमानुसार 2 दिन की बच्ची को दत्तक ग्रहण के शासकीय नियमानुसार गोद लिया है। बच्ची गोद लेने के बाद बच्ची की देखभाल के लिए चाइल्ड एडॉप्शन लिव की मांग किया था जिसे अनावेदकगण के द्वारा यह कह कर इंकार किया गया कि यह उनकी पॉलिसी में नहीं है। आयोग में प्रकरण प्रस्तुत होने के बाद 84 दिनों की छुट्टी स्वीकृत किया, जबकि शासन के नियमानुसार 180 दिन की छुट्टी और 60 दिन का कम्यूटेड लिव की पात्रता रखती है। क्योंकि शासकीय सेवा में हर माता को अपने छोटे बच्चे के पालन-पोषण के लिए यह छुट्टी की पात्रता है। और इसके लिए मातृत्व अवकाश के कानूनी के स्पष्ट प्रावधान है। 22 फरवरी की सुनवाई में अनावेदकगणों द्वारा प्रस्ताव रखा गया था कि जल्द ही बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की मीटिंग बुलाकर शीघ्र निर्णय लिया जाएगा। बैठक में आयोग द्वारा भी दो व्यक्तियों को भेजे जाने का प्रस्ताव किया गया था, जिसे अनावेदकगणों ने स्वीकार किया था। बैठक की सूचना आयोग को न मिलने पर 28 मार्च को ईमेल द्वारा आई.आई.एम. रायपुर को पत्र प्रेषित किया गया, जिसका जवाब 5 अप्रैल तक अनावेदकगणों को देना था, लेकिन उक्त जवाब 12 अप्रैल को डाक द्वारा भेजा गया। जिसमें आई.आई.एम. ने 2 अप्रैल को पत्र तैयार किया लेकिन 12 अप्रैल को पत्र भेजा ।आई.आई.एम. रायपुर एक प्रतिष्ठित संस्थान होने के बावजूद ईमेल द्वारा
भेजे गए पत्र का जबाव डाक द्वारा भेजा गया। इस वजह से उनकी दलील स्वीकार योग्य नहीं है। मामला स्पष्ट है कि जानबूझ कर आवेदिका के प्रकरण में संस्था ने लेट-लतीफी दिखाई। अनावेदक द्वारा दिये गये जवाब अनुसार आवेदिका शासकीय सेवक नहीं है। तथा सेन्ट्रल सर्विसेस सिविल नियम की पात्रता नहीं रखती है। आवेदिका ने जवाब देते हुए कहा कि वह विगत दस वर्षों से शासकीय सेवक के रूप में स्थायी कार्यरत् है तथा आई.आई.एम. रायपुर भारत की मान्यता प्राप्त संस्था है जो भारत के कानून को मानने के लिए बाध्य है। आवेदिका ने अन्य आई.आई.एम. संस्थानों से आयोग में दस्तावेज भी प्रस्तुत किया है जो भारत शासन के सी.सी.एस. नियम के बंधनकारी है। इस अनुसार आवेदिका 180 दिन चाईल्ड एडॉप्शन लिव एवं 60 दिन कम्यूटेड छुट्टी की पात्रता रखती है। इस बात का कोई भी स्पष्ट जवाब अनावेदक द्वारा नहीं दिया जा रहा है और उनका कहना है कि आई.आई.एम. रायपुर आटोनॉमस संस्था है और वे सी.सी.एस. नियम का बंधनकारी नहीं है। उभयपक्ष को विस्तार से सुनने के बाद आयोग ने कहा कि आवेदिका अपने पक्ष को सही साबित करने में सफल रही है और 17 वर्ष के बाद एक नाबालिग बच्ची को गोद लिया है तो अपने मां कि जिम्मेदारी पूरी करने के लिए शासन के नियमानुसार 6 माह की सी.सी.एल लिव और 2 माह की कम्यूटेड लिव की पात्रता रखती है। अनावेदक पक्ष को आयोग ने समझाईश दिया कि वह 15 दिन के अंदर आवेदिका के कुल 8 माह के अवकाश के प्रकरण को निराकरण कर नाबालिग बच्ची और उसकी मां के हित को देखते हुए मानवता का परिचय दे, और आवेदिका को अपनी नाबालिग बच्ची के पालन-पोषण में सहयोग करें। 15 दिनों के अंदर आवेदिका के अवकाश मामले में निर्णय ले, और उसकी प्रति आयोग में प्रेषित करें।