रायपुर। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता व विधायक शिवरतन शर्मा ने गौ-धन न्याय योजना की शुरुआत में ही सामने आ रहीं गड़बड़ियों के मद्देनज़र प्रदेश सरकार और कांग्रेस की राजनीतिक नीयत पर सवाल खड़े किए हैं। श्री शर्मा ने कहा कि इस योजना के लिए गठित गौठान समितियों के सदस्यों की नियुक्ति में प्रदेश सरकार द्वारा जारी गाइड लाइन का खुला उल्लंघन किया गया है, जिससे ग्राम सभाओं में व्यापक असंतोष उभर रहा है।
भाजपा प्रदेश प्रवक्ता व विधायक श्री शर्मा ने भाटापारा-बलौदाबाजार ज़िले का हवाला देते हुए कहा कि इस योजना के तहत गठित की जाने वाली गौठान समितियों में चार सदस्य पदेन रखे जाने हैं, जबकि नौ अन्य सदस्यों के नाम ग्राम सभाओं में अनुमोदन के आधार पर इन समितियों में जोड़े जाने थे। संबंधित ज़िम्मेदार लोगों ने इन नौ सदस्यों के लिए 1:4 के अनुपात में 36 नाम ग्राम सभाओं से अनुमोदित कराके मंगाए थे। लेकिन ज़िला प्रभारी मंत्री द्वारा घोषित सूची में कांग्रेस के लोगों ने जो ‘अपनों’ को उपकृत करने की गरज से सूची भेजी थी, गौठान समितियों में उन नामांकितों को ज़गह दी गई जबकि इन समितियों में ग्राम सभाओं द्वारा अनुमोदित लोगों को कोई ज़गह नहीं दी गई। श्री शर्मा ने इस बात पर भी हैरत जताई कि ज़िला प्रभारी मंत्री ने जो सूची सरकारी स्तर पर जारी की है, उस पर कांग्रेस पदाधिकारियों के हस्ताक्षर हैं। इस तरह गठित की गई गौठान समितियाँ अवैध मानी जानी चाहिए। इससे यह भी साफ हो चला है कि प्रदेश सरकार इस तरह योजनाएँ परोसकर प्रदेश को भ्रमित करने में लगी है।
भाजपा प्रदेश प्रवक्ता व विधायक श्री शर्मा ने कहा कि इस योजना की शुरुआत तो प्रदेश सरकार ने कर दी है, पर अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि इसके लिए फंडिंग कैसे होनी है? सन 2020-21 के बज़ट प्रस्ताव में इस योजना की न तो कोई चर्चा तक की गई और न ही इसके लिए कोई बज़ट प्रावधान रखा गया है। अब प्रदेश सरकार बिना बज़ट के इस योजना पर काम कर रही है तो साफ है कि वह प्रदेश में ढोंग, झूठ-फरेब और छलावों की राजनीति कर रही है। सरकार खरीदे गए गोबर की राशि का भुगतान 15 दिनों में करने की बात कह रही है तो यह साफ होना चाहिए कि इस राशि का प्रबंध सरकार कहाँ से और कैसे कर रही है? फिर जो वर्मी कम्पोस्ट होगा, उसके लिए प्रदेश सरकार ने मार्केट के बारे में भी कोई स्पष्ट धारणा प्रदेश के सामने नहीं रखी है। श्री शर्मा ने कटाक्ष किया कि जिस योजना का स्वरूप, उद्देश्य और आर्थिक ढाँचा ही स्पष्ट नहीं है, और जिसकी शुरुआत ही ‘अपनों को उपकृत’ करके नियम-क़ायदे से परे समिति बनाने से हो रही है, उस योजना का हश्र क्या होगा, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।