छत्तीसगढ़: भूमि अधिग्रहण को लेकर स्थानीय लोगों का विवाद जारी, एक बार फिर हसदेव में पेड़ कटाई होगी शुरू

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परसा ईस्ट केते बासेन कोयला खदान का सेकंड फेस शुरू हुआ है पिछले 2 साल मार्च 2022 से। जहां दो बार में पेड़ काटे गए हैं 26 सितंबर 2022 और 23 सितंबर 2023 को। यह खदान जिसे आगे बढ़ाया जा रहा है जो 1134 हेक्टर में सेकंड फेस को आगे बढ़ाना है। इस इलाके में जो प्रभावित गांव है उसका नाम घाटबर्रा है। यह घाटबर्रा गांव का 80 प्रतिशत हिस्सा पुनर्वास होना है। यहां पर जो भूमि अधिग्रहण हो रहा है वह भूमि अधिग्रहण एक्ट 2013 के तहत है। भूमि अधिग्रहण एक्ट 2013 के तहत जो नियम है वह यह है कि अगर किसी प्रकार से भूमि अधिग्रहण किया जाएगा उसमें ग्राम सभा से अनुमति लेना अनिवार्य होगा।

भूमि अधिग्रहण पर विवाद, फिर मिली परमीशन

इस बीच घाटबर्रा गांव के लोगों का यह कहना है कि आज तक हमारे ग्रामसभा से किसी प्रकार से अनुमति नहीं ली गई है और बिना अनुमति के भूमि अधिग्रहण का प्रक्रिया जारी है। बतादें कि पिछले दिनों 6 अक्टूबर 2022 को कलेक्टर ने एक आर्डर किया था घाटबर्रा के पुनर्वास प्रक्रिया के लिए एक ग्राम सभा की जाए। इस आर्डर के बाद ग्रामसभा में लगातार विरोध शुरू हो गया था। जिस पर आरोप यह है कि विरोध होने के बाद कलेक्टर ने बैक डेट पर आर्डर जारी कर दिया था। जिसमें यह कहा गया था कि ग्राम सभा की प्रक्रिया को अभी रोका जा रहा है। यही वजह थी कि उस वक्त ग्राम सभा नहीं हुई। इसके बाद यह ग्राम सभा 19 जून 2024 को होनी थी। जिसे लेकर गांव के लोगों में एक बार फिर विरोध हुआ और गांव के लोगों ने संयुक्त रूप से एसडीएम को ज्ञापन सौपा। जिसमें यह कहा गया है कि जब हमने भूमि अधिग्रहण की परमिशन नहीं दी है तो गांव के पुनर्वास का मामला कहां से आता है। गांव के लोग कहना है कि जब हम जमीन देने के लिए सहमत नहीं है तो पुनर्व्यस्थापन क्यों होगा। इस बीच गांव के लोगों के कड़े विरोध के बाद भी ग्राम सभा हुई। जहां ग्रामीणों ने दबाव बनाने की बात कही थी। इस बीच खबर यह है कि भूमि अधिग्रहण की सहमित मिल गई है।

इलाके में जंगल बचाने की लड़ाई जारी

मध्य भारत का सबसे बड़ा वन क्षेत्र हसदेव अरण्य में कोल ब्लॉक की शुरुआत हो चुकी है। यह कॉल ब्लॉक राजस्थान विद्युत कंपनी को आवंटित है। जहां उत्खनन का ठेका अदानी कंपनी को मिला है। इसके बाद यहां के जंगल को बचाने के लिए लंबी लड़ाई चल रही है। जंगल बढ़ाने की लड़ाई लड़ रहे आलोक शुक्ला ने यह आरोप लगाया है कि आज पूरा तंत्र अडानी के आगे घुटने के बल बैठा हुआ है। घाटबर्रा के मसले में तो यह विषय है की भूमि अधिग्रहण के लिए ग्राम सभा ने सहमति नहीं दी, लेकिन राज्य सरकार भूमि अधिग्रहण के बाद की प्रक्रिया पुनर्वास और पुनर्व्यस्थापन के लिए ग्राम सभा का आयोजन कर रही है।

2028 में शुरू होने वाली प्रक्रिया पहले से जारी

जानकारी के मुताबिक अड़ानी को परसा ईस्ट केते बासेन में करीब 1841 हेक्टेयर में उत्खनन करना है। जिसको दो चरणों में तय किया गया है। इसके पहले चरण में करीब 900 हेक्टेयर में उत्खनन होगा और उसके बाद बचे हुए से हिस्से में होना है। पहले हिस्से में उत्खनन होने के बाद अब दूसरे हिस्से के उत्खनन की प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया है। कागजों में यह साफ लिखा हुआ है कि फर्स्ट फेस के बाद सेकंड फेस की बारी आनी है और सेकंड फेस साल 2028 में शुरू होना है। लेकिन समय से पहले ही कंपनी ने यह बता दिया कि यहां कोयला निकाला जा चुका है कई बार इस कोयला खदान और कोयला भंडारण के खत्म होने को लेकर भी सवाल उठाते रहे हैं। इसके बाद अब सेकंड फेस के लिए जिस जगह पर उत्खनन होना है वहां कागजी प्रक्रिया शुरू हो गई है। जिसके बाद अब स्थानीय ग्रामीणों में जमकर विरोध देखा जा रहा है। सैकड़ो ग्रामीण इस प्रक्रिया के विरोध में एक बार फिर खड़े हो गए हैं।

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