बस्तर की नई कहानी: ‘नियद नेल्ला नार’ ने दिखाई शांति-समृद्धि की राह

प्रादेशिक मुख्य समाचार

दंतेवाड़ा। बस्तर में नक्सलियों के लिए बंदूक उठा चुके ग्रामीण अब हल-फावड़ा-कुदाल उठाकर अपने गांवों की तस्वीर के साथ तकदीर बदलने जुट गए हैं। प्रदेश सरकार की ‘नियद नेल्ला नार’ योजना में नक्सल प्रभावित गांव के विकास को गति देने बस्तर में कार्य शुरू किए गए हैं।

इससे ग्रामीणों का सरकार पर भरोसा बढ़ा है। नियद नेल्ला नार योजना में दंतेवाड़ा जिले का झिरका गांव भी शामिल है। इस गांव में पहुंचने पर यहां किए जा रहे विकास कार्यों से ग्रामीणों की विचारधारा में बदलाव के साथ सहभागिता के दृश्य देखने को मिले।

साल 2005 में सलवा जुडुम आंदोलन के बाद दो दशक तक नक्सलियों के प्रभाव में रहे इस गांव के अधिकतर लोग नक्सली बन गए थे, पर अब यहां नक्सलवाद का नामो-निशान मिट चुका है। सरकार के सहयोग से ग्रामीण नक्सल भय से मुक्त होकर शांति और समृद्धि की राह पर चल पड़े हैं।

अब खेती किसानी कर रहे गांव के युवा

झिरका गांव के आयतुवारी, हुंगा व गंगू ने बताया कि वे सभी कुछ वर्ष पहले तक नक्सल संगठन के लिए काम करते थे। तब इस गांव में कोई भी पुरुष सदस्य नहीं रहता था, सभी जगल-पहाड़ों पर छिपे रहते थे। यहां कुदेर और कमालूर के बाद अब बासनपुर में सुरक्षा बल का कैंप खोला गया तो सभी ने एक साथ समर्पण कर दिया था।

अब वे सभी मुख्यधारा में लौटकर गांव में खेती-किसानी कर शांतिपूर्ण तरीके से जीते हैं। ‘नियद नेल्ला नार’ योजना से सरकार की ओर से कृषि के लिए सहायता भी मिल रही है। गांव में सड़क, पुल, राशन दुकान, आंगनबाड़ी भवन का निर्माण भी प्रारंभ हुआ है, जिसमें गांव के लोगों को गांव में ही काम देने से आय में भी वृद्धि हुई है।

पहिये ने बदली जीवन की गति

दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर स्थित झिरका गांव तक पक्की सड़क से होकर जाते हुए यह आभास ही नहीं हुआ कि यह कभी नक्सल संवेदनशील गांव था। अपनी नई साइकिल पर इठलाते हुए जाते भीमे ने बताया कि पहले सड़क नहीं होने की वजह से ग्रामीण पैदल ही चलते थे।

मगर, अब सड़कों के निर्माण के बाद लोगों ने साइकिल और मोटरसाइकिल तक खरीद ली हैं। उसने बताया कि पांच हजार रुपये में उसने यह साइकिल खरीदी है। पहिये ने यहां जीवन की गति बदल दी है। यातायात सुगम हुआ है, जिससे लोगों की जिंदगी आसान हुई है।

नक्सलवाद नहीं, अब शिक्षा का पाठ

झिरका में अब नक्सलवाद का पाठ नहीं पढ़ाया जाता, यहां नई पीढ़ी अब स्कूल जाकर ‘अ’ से अनार पढ़ रही है। इस गांव में इसी वर्ष बने आंगनबाड़ी में नन्हें बच्चों को पोषण आहार लेते और प्राथमिक स्कूल में आदिवासियों की नई पीढ़ी को पढ़ाई करते देखना सुखद अहसास रहा।

शिक्षक उमेश नेताम ने बताया कि जब वे इस स्कूल में पहली बार पहुंचे थे, तो कई घंटे तक नक्सलियों ने पूछताछ की थी। कभी-कभार जवान गश्त करते दिखते थे। मगर, अब यहां शांति है।

आय बढ़ने से ग्रामीण खुशहाल

अब गांव में राशन मिल रहा है। सड़कें पक्की की जा रही हैं। यहां से पांच किमी दूर पहाड़ों के पार झारालावा प्रपात पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित हो रहा है। ग्रामीणों की इको विकास समिति गठित की है, जिससे वाहन शुल्क से भी आय हो रही है। दंतेवाड़ा के अनेक गांवों में विकास कार्यों को गति दी जा रही है।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *