नयी दिल्ली. केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विज्ञान और किसान के बीच की दूरी घटाने पर जोर देते हुए कहा है कि किसान मिट्टी के सबसे बड़े संरक्षक हैं और उन्हें शिक्षा, प्रोत्साहन तथा आधुनिक वैज्ञानिक की जानकारी के माध्यम से सशक्त बनाया जाना चाहिए।
श्री चौहान ने मंगलवार को यहां “वैश्विक मृदा कॉफ्रेंस 2024” को संबोधित करते हुए कहा कि किसान मिट्टी के सबसे बड़े संरक्षक हैं उन्हें शिक्षा, प्रोत्साहन और आधुनिक वैज्ञानिक जानकारी के माध्यम से सशक्त बनाना है। युवाओं को भी इसमें शामिल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कृषि एक लाभदायक और सम्मानजनक पेशा है इसके लिए भी युवाओं को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। छात्राओं और शोधकर्ताओं को स्थानीय और वैश्विक मृदा की चुनौतियों का समाधान करने वाले नवाचारों को विकसित करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने कहा कि मिट्टी का क्षरण राष्ट्रीय मुद्दा ही नहीं बल्कि वैश्विक चिंता का विषय है जो कि संयुक्त राष्ट्र का सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) को प्राप्त करने के लिए अनिवार्य है। सम्मेलन में नीति आयोग के कृषि सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद भी मौजूद रहे।
उन्होंने कहा कि युद्ध स्तर पर वैज्ञानिक नवाचारों का समाधान और विस्तार प्रणालियों की भूमिका महत्वपूर्ण है। भारत के कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसियां के सहयोग से भी किसानों को ज्ञान और कौशल प्रदान करने के लिए काम कर रहे हैं। विज्ञान और किसान के बीच की दूरी कम करनी होगी। “लैब टू लैंड” – वैज्ञानिक से किसान तक समय पर सही जानकारी किसानों को मिलने का प्रयास किया जाना चाहिए।
श्री चौहान ने बताया कि हम आधुनिक कृषि चौपाल का कार्यक्रम भी जल्दी ही शुरू करने वाले हैं जिसमें वैज्ञानिक लगातार किसानों से चर्चा करके जानकारियां भी देंगे और समस्याओं का समाधान भी करेंगे। इसके अतिरिक्त निजी और ग़ैर सरकारी संगठनों के नेतृत्व वाली विस्तार सेवाओं ने उन्नत तकनीक को किसानों तक पहुंचाया हैं और उसका लाभ अब किसान ले रहे हैं।
उन्होंने कहा कि मृदा स्वास्थ्य गंभीर चिंता का विषय है। कैमिकल फर्टिलाइज़र का बढ़ता प्रयोग और बढ़ती निर्भरता, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और अस्थिर मौसम ने मिट्टी पर दबाव डाला है। भारत की मिट्टी बड़े स्वास्थ्य संकट का सामना कर रही है। कई अध्ययनों के अनुसार देश की 30 प्रतिशत मिट्टी खराब हो चुकी है। मिट्टी का कटाव, उसमें लवणता, प्रदूषण, धरती में आवश्यक नाइट्रोजन और माइक्रो न्यूट्ररेंट का स्तर कम कर रहा है।
श्री चौहान ने कहा कि मिट्टी में जैविक कार्बन की कमी ने उसकी उर्वरकता को कमजोर किया है। यह चुनौतियां न केवल पैदावार को प्रभावित करती हैं बल्कि आने वाले समय में किसानों की आजीविका और खाद्य संकट भी पैदा करेगी। इसलिए इस पर गंभीरता से इस पर विचार किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाने की शुरूआत हुई है और 22 करोड़ से अधिक कार्ड किसानों को बनाकर दिये हैं। किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड से अब पता है कि कौन सी खाद कितनी मात्रा में उपयोग करनी है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना- “पर ड्रॉप मोर क्रॉप” के तहत जल के उचित उपयोग, अपव्यय को कम करना और पोषण तत्व के उच्चतम अवशेषों को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया है। पूर्वोत्तर के लिए जैविक मूल विकास संकलन बनाया है। इन आठ राज्यों में किसानों को पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र की जैव विविधता की रक्षा करते हुए जैविक कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
केंद्रीय कृषि मंत्री ने बताया कि परंपरागत कृषि विकास योजना के अर्न्तगत 20 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खेती की पद्धतियों को अपनाया गया है जिससे सिंथेटिक उर्वरक पर निर्भरता कम हुई है और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार आया है। कैमिकल फर्टिलाइजर का अत्यधिक उपयोग न हो और प्रतिकूल प्रभाव न हो इसके लिए नीम कोटेडिड उर्वरक को बढ़ावा दिया है। जैव उर्वरकों के उपयोग को भी बढ़ावा देने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्राकृतिक खेती की तरफ बढ़ने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कैमिकल फर्टिलाइजर से मृदा का स्वास्थ्य ही खराब नहीं हो रहा बल्कि मनुष्यों, जीव जन्तुओं का स्वास्थ्य भी खराब हो रहा है। मिट्टी की उवर्रकता को बनाये रखने के लिए एकीकृत पोषक तत्व और जल प्रबंधन विधियों को अपनाना पड़ेगा। लघु सिंचाई , फसल विविधिकरण, कृषि वानिकी आदि अलग-अलग तरीकों से मिट्टी का स्वास्थ्य ठीक करना, मिट्टी का कटाव और जल भंडारण की क्षमता में सुधार के लिए सभी उपाय किये जाने चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र है कि हम सब में एक ही चेतना है। हमारे ऋषियों ने कहा है कि एक ही चेतना सब में है इसलिए सारी दुनिया ही एक परिवार है और सभी को अपना जैसा मानो। मनुष्यों में ही वह चेतना नहीं है वह प्राणियों में भी है। जब हम माटी की बात करते हैं तो वही चेतना भी मिट्टी में भी है। मिट्टी निर्जीव नहीं है, मिट्टी सजीव है। हमारा शरीर मंत्र तत्व से बना है जिसमें माटी भी एक प्रमुख तत्व है। माटी है तो जीवन है। माटी अगर बीमार है तो प्राणी भी स्वस्थ नहीं रह सकता है। हम एक दूसरे के पूरक हैं इसलिए माटी स्वस्थ रहनी ही चाहिए। आज पूरा विश्व माटी के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है। ये धरती केवल हमारी ही नहीं है। इस धरती पर जीव जन्तुओं और पेड़-पौधों का भी अधिकार है।