तेल की वैश्विक मांग में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण, 2035 तक मांग में वृद्धि की संभावना

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नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2035 तक वैश्विक तेल मांग में वृद्धि का नेतृत्व करने के लिए तैयार है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत इस अवधि के दौरान वैश्विक तेल मांग में लगभग 2 मिलियन बैरल प्रति दिन (एमबी/डी) जोड़ेगा, जिससे यह पूरे पेट्रोलियम उद्योग का प्राथमिक विकास चालक बन जाएगा। यह बदलाव ऐसे समय में आया है जब चीन, जो ऐतिहासिक रूप से तेल बाजार की वृद्धि का नेतृत्व कर रहा है, बिजली से चलने वाली ऊर्जा के उपयोग की ओर बढ़ रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इलेक्ट्रिक वाहनों के बढ़ने के कारण सड़क परिवहन के लिए चीन की तेल खपत में गिरावट आने का अनुमान है। हालांकि, पेट्रोकेमिकल उत्पादन में तेल के बढ़ते उपयोग से यह गिरावट आंशिक रूप से ऑफसेट हो जाती है। वैश्विक स्तर पर, स्टेटेड पॉलिसी परिदृश्य (STEPS) के तहत तेल की मांग में वृद्धि धीमी हो रही है। यह प्रमुख तेल उत्पादक देशों के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियों का कारण बन रही है। इन देशों को अति आपूर्ति की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि 2030 तक अतिरिक्त कच्चे तेल की उत्पादन क्षमता बढ़कर 8 एमबी/डी हो जाने की उम्मीद है। आईईए ने मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक तनावों के कारण तेल और गैस आपूर्ति में संभावित निकट-अवधि व्यवधानों की भी चेतावनी दी है।

आईईए की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के तेल और तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) आपूर्ति का लगभग 20 प्रतिशत वर्तमान में होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है, जो इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण समुद्री चोकपॉइंट है। इन जोखिमों के बावजूद, रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि बाजार संतुलन को आसान बनाने और तेल की मांग में वृद्धि में गिरावट से लंबे समय में कीमतें स्थिर हो सकती हैं। इसके अलावे, परिवहन क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन चल रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दशक में, सड़क परिवहन ने तेल की मांग में 4.2 एमबी/डी की वृद्धि की है, जो वैश्विक तेल मांग वृद्धि का लगभग आधा हिस्सा है।

हालांकि, यह प्रवृत्ति बदल रही है, 2030 तक यात्री कारों के लिए तेल की मांग में 1 एमबी/डी की गिरावट आने की उम्मीद है। यह परिवर्तन STEPS के तहत इस दशक के अंत तक वैश्विक तेल मांग में अनुमानित शिखर के पीछे एक प्रमुख कारक है। भविष्य की ओर देखते हुए, उम्मीद है कि नई एलएनजी परियोजनाओं से 2030 तक वैश्विक निर्यात क्षमता में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि होगी, जिससे वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में और अधिक परिवर्तन आएगा। रिपोर्ट के अनुसार, जैसे-जैसे देश इन बदलावों के अनुकूल होते जाएंगे, भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतें वैश्विक तेल बाजारों को आकार देने में केंद्रीय भूमिका निभाएंगी।

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