खून में प्लास्टिक कण पहुँचने पर कैंसर का खतरा

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भारत के स्वतंत्र शोधकर्ता पद्मश्री वैज्ञानिक डॉ अजय कुमार सोनकर ने दावा किया है कि ‘टी बैग’ का इस्तेमाल से अतिसूक्ष्म प्लास्टिक कण (माइक्रान एवं नैनो) हमारे खून में पहुँचकर कैंसर जैसे घातक रोग का कारक बन रहा है।
डॉ सोनकर ने बताया कि एक टी बैग में 20 से 30 फीसदी प्लास्टिक के फाइबर होते हैं जो माइक्राॅन एवं नैनो आकार में लाखों की संख्या में चाय की प्याली के रास्ते हमारे खून में पहुँच कर कैंसर जैसी जानलेवा व्याधियां पैदा कर रही है। हमारे खून में प्लास्टिक के कण भेजने वाला अकेला माध्यम टी बैग ही नहीं है, बल्कि यह भोजन, वाष्प के साथ बादल में पहुंचकर वर्षा के पानी से भी पहुंच रहा है।
उन्होंने बताया कि प्लास्टिक में बिस्फेनाल-ए (बीपीए) रसायन के अलावा पैलेडियम, क्रोमियम और कैडिमियम जैसे तमाम धातुएं शामिल हैं जो कैंसर जैसे अनेक रोगों को जन्म देने में सक्षम हैं। हमारे घर के अंदर से लेकर बाहर तक प्लास्टिक का वर्चस्व है। घरों में पानी के पाइप, छत पर रखी पानी की टंकी, भोजन के बर्तन, किचन मे नमक से लेकर लगभग हर खाद्य एवं पेय पदार्थ यहां तक की जीवन रक्षा वाली तरल दवा भी प्लास्टिक की बोतल में मिलती हैं।
डाॅ सोनकर ने “यूनीवार्ता” को बताया कि शरीर में एंडोक्राइन प्रणाली में ग्रंथियों और अंगों का एक जटिल समूह होता है जो हार्मोन का उत्पादन और स्राव करके शरीर के विभिन्न जैविक कार्यों को विनियमित और नियंत्रित करता है। बीमार पड़ने या मानसिक व्याधि से गुजरने पर यही एंडोक्राइन प्रणाली हमारा उपचार करती है। प्लास्टिक के रसायन एंडोक्राइन प्रणाली को बाधित कर देते हैं जिससे हमारा शरीर गम्भीर बीमारियों से ग्रसित हो जाता है।
पद्मश्री सोनकर ने अपने अंडमान-नीकोबार प्रयोगशाला में सीप के टिश्यू कल्चर के जरिए फ़्लास्क में मोती तैयार करने का काम कर पूरी दुनिया में अपना नाम रोशन किया है। समुद्री जीव जंतुओं की दुनिया पर केंद्रित तमाम साइंटिफ़िक जर्नल्स ‘एक्वाक्लचर यूरोप सोसायटी’ वर्ल्ड अक्वाकल्चर, इनफोफिश इन्टरनेशनल में डॉक्टर अजय सोनकर के इस नए रिसर्च का प्रकाशन वर्ष 2021 हो चुका है।
मोती बनाने की विधा में ‘टिश्यू कल्चर’ की आधुनिकतम तकनीक का उपयोग करते हुए नियंत्रित इपीजेनेटिक द्वारा ख़ास मोती बनाने वाले भारतीय वैज्ञानिक सोनकर को स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख विश्वविद्यालय के ‘फॉरेंसिक जेनेटिक मेडिसिन विभाग’ ने इस क्षेत्र में आगे के अनुसंधान के लिए पिछले वर्ष मार्च में एक साथ मिलकर काम करने का प्रस्ताव दिया है।

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