घरों में मौजूद एयरकंडीशनर और फ्रिज से निकलने वाली गैस से कई बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। अमेरिका में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। अध्ययन में यह भी बताया गया है कि इस गैस के प्रभाव के कारण कैंसर, मलेरिया, मोतियाबिंद और त्वचा रोग जैसी गंभीर बीमारियों के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है।
अध्ययन के शोधकर्ताओं ने बताया कि एयरकंडीशनर और फ्रिज में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन यानी एचफएफसी गैस भरी जाती है और इनसे इसी गैस का उत्सर्जन होता है। एल्युमिनियम प्रोसेसिंग के समय भारी मात्रा में बनती हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह गैसें हमारे वायुमंडल में करीब 50 हजार साल तक बनी रह सकती हैं। जलवायु पर इनका काफी बुरा असर पड़ता है। फ्लोरीन और हाइड्रोजन के परमाणुओं से बनाई गई यह गैस धरती को सूर्य के विकिरण से बचाने वाली ओजोन परत को नुकसान पहुंचाती हैं। इससे निकलने वाली क्लोरीन गैस ओजोन के तीन ऑक्सीजन परमाणुओं में से एक के साथ क्रिया करती है। फ्लोरीन का एक परमाणु ओजोन के एक लाख अणुओं को खत्म करता है। नतीजतन ओजोन परत लगातार पतली होती रहती है और बीमारियां बढ़ रही हैं।
समुद्री तटों पर रहने वालों को ज्यादा खतरा-
शोधकर्ताओं ने बताया कि समुद्र तटों के नजदीक रहने वाली आबादी को इससे सबसे ज्यादा नुकसान उठाना होगा। ओजोन परत को धरती की छतरी और पर्यावरण का सुरक्षा कवच भी कहा जाता है। अगर ओजोन परत बहुत ज्यादा पतली हो जाती है तो धरती पर जीवन काफी मुश्किल हो जाएगा। दरअसल, ओजोन परत के ज्यादा पतला होने पर पराबैंगनी किरणें आसानी से धरती पर पहुंचेंगी। पराबैंगनी किरणों के घातक प्रभाव के तौर पर ही गंभीर बीमारियां बढ़ेंगी।
समुद्री जीवों विलुप्त हो रहे, ग्लेशियर पिघल रहे-
शोधकर्ताओं का कहना है कि ओजोन परत को होने वाले नुकसान के कारण पराबैंगनी किरणों के सीधे धरती पर पहुंचने से कई समुद्री जीव विलुप्त हो रहे हैं। वहीं, नासा के मुताबिक, ओजोन परत में उत्तरी अमेरिका के आकार से भी बड़ा छेद हो गया है, जो काफी चिंताजनक है। ओजोन परत में पहला छेद कंटार्कटिका के ठीक ऊपर बना है। इसलिए क्षेत्र के ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार बढ़ गई है। इससे कई समुद्र तटीय इलाकों के डूबने का खतरा भी बढ़ रहा है।
यूरोपीय देशों ने लगाई पाबंदी-
यूरोप में 2023 की शुरुआत से ही इन गैस के इस्तेमाल को धीरे-धीरे बंद करने की शुरुआत की जा चुकी है। यह गैस लोगों की सेहत को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं। इसके चलते यूरोपीय संघ के देशों के बीच एक संधि समझौता हुआ है। इसके तहत संघ के सभी 27 सदस्य देश साल 2050 तक इन गैसों के इस्तेमाल पर पूरी पाबंदी लगाने पर सहमत हुए हैं।
1913 में हुई थी ओजोन परत की खोज-
ओजोन लेयर की खोज 1913 में फ्रेंच वैज्ञानिक फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन ने की थी। ब्रिटेन के मौसम विज्ञानी जीएमबी डोबसन ने नीले रंग की गैस से बनी ओजोन परत के गुणों का विस्तार से अध्ययन किया। डोबसन ने 1928 से 1958 के बीच दुनियाभर में ओजोन परत के निगरानी केंद्रों का नेटवर्क स्थापित किया। ओजोन की मात्रा मापने की इकाई डोबसन को जीएमबी डोबसन के सम्मान में ही शुरू किया था।
