नयी दिल्ली, केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने देश की सांस्कृतिक, आर्थिक और वैश्विक भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि भारत का प्रभाव केवल अपने सीमित भूभाग तक नहीं, बल्कि मध्य एशिया तक स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
श्री शेखावत ने इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए ) में केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय की ओर से आयोजित अंतरराष्ट्रीय पहल ‘प्रोजेक्ट मौसम’ के तहत ‘मानसून: द स्फीयर ऑफ कल्चरल एंड ट्रेड इन्फ्लुएंस’ शीर्षक से दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर कल शाम यह बात कही। सेमिनार का आयोजन एसजीटी विश्वविद्यालय के एडवांस स्टडी इंस्टीट्यूट ऑफ एशिया के सहयोग से किया गया है।
इस मौके पर मुख्य अतिथि केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन , डॉ. विनय सहस्रबुद्धे, आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ‘एशिया’ के शोध निदेशक प्रो. अमोघ राय और आईजीएनसीए के ‘प्रोजेक्ट मौसम’ के निदेशक डॉ अजित कुमार सहित अन्य गणमान्य मौजूद थे।
श्री शेखावत ने कहा,“हमारे यहां से लेकर के मध्य एशिया तक, सब देशों के बीच हमारी संस्कृति का प्रभाव निर्विवाद रूप से दिखाई देता है और उसके चलते जो वृहत्तर भारत की कल्पना है, उसका मूल आधार भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक संपन्नता है। उन्होंने कहा, ” अब भारत का सामर्थ्य बढ़ रहा है, भारत की पहचान बदल रही है, भारत की जनशक्ति बढ़ रही है और पूरे विश्व में भारत की क्षमताओं का प्रभुत्व नए सिरे से स्थापित हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने आर्थिक दृष्टिकोण से, सामरिक दृष्टिकोण से, तकनीकी दृष्टिकोण से प्रगति की है और आज पूरा विश्व एक बार फिर नए सिरे से भारत की तरफ आशा की दृष्टि से देख रहा है और जब भारत की ये महत्ता स्थापित होती है, तो निश्चित रूप से हमारी सांस्कृतिक महत्ता भी स्थापित होती है।”
कार्यक्रम के दौरान कुल 38 शोधपत्र प्रस्तुत किए जाएंगे। इन शोधपत्रों के माध्यम से विद्वान तथा विशेषज्ञ हिंद महासागर क्षेत्र में ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंधों की पड़ताल करेंगे।
‘प्रोजेक्ट मौसम’ मूर्त और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को एकीकृत करके कनेक्टिविटी और समुद्री साझेदारी को बढ़ावा देने में भारत के निरंतर नेतृत्व को भी रेखांकित करता है, जो यूनेस्को के समुद्री विरासत अध्ययनों (मेरीटाइम हेरिटेज स्टडीज) में योगदान देता है। इस दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का उद्देश्य भविष्य की नीतिगत बातचीत के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाले अकादमिक सहयोग और विरासत संरक्षण के साथ गहन सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा देना है।
डॉ. सहस्रबुद्धे ने कहा, “यह संस्कृति ही थी, जिसने भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच संबंधों की संरचना को बुना था और मजबूत सांस्कृतिक संबंधों के लिए अलग प्रकार के निवेश की आवश्यकता होती है। वित्तीय संसाधनों के अलावा, हमें बौद्धिक और भावनात्मक दोनों तरह से निवेश करने की आवश्यकता है। यह केवल सरकारी नीतियों की नहीं, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया को हमारी लोक-सुलभ चेतना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने की गहरी इच्छा और दृढ़संकल्प की मांग करता है।”
