काशी का मां अन्नपूर्णा मंदिर ऐसा मंदिर है जो साल में सिर्फ धनतरेस से भाईदूज तक ही खुलता है। भाईदूज तक यहां लाखों भक्तदर्शन को आते हैं। इस मंदिर की एक खास बात यह है कि यहां प्रसाद में मिठाई नहीं बल्कि सिक्का और चावल मिलते हैं। ऐसा कहा जाता है, जिसको यह सिक्का मिलता है, वो इसे अपने भंडार ग्रह में रखता है। ऐसा करने से सालभर तक उसके यहां अन्न और धन की कोई कमी नहीं रहती। मां अन्नपूर्णा की कृपा उस पर बनी रहती है। इस मंदिर के महंत शंकर पुरी ने बताया कि धनतेरस पर, भक्तों के बीच वितरण के लिए एक और दो रुपए सहित पांच लाख से अधिक सिक्के (खजाना) मंदिर में लाए गए हैं।
पहले इन सिक्कों की पूजा होगी फिर प्रसाद के तौर प भक्तों को वितरित कर दिए जाएंगे। इसके अलावा प्साद में लावा यानी मुरमुे भी प्रसाद के तौर पर दिए जाते हैं। इस प्रसाद के लिए इस बार 11 क्विंटल लावा (मुरमुरे) लाए गए थे। उन्होंने यह भी बताया कि भक्त अपने भण्डार में खजाना रखते हैं। महंत पुरी ने कहा कि इस खजाने को प्रसाद के रूप में घर के भंडार में रखने से अन्न-धन की कभी कमी नहीं होती। महंत शंकर पुरी ने बताया कि धनतेरस 10 नवंबर को निर्धारित समय से एक घंटे पहले ही मंदिर के कपाट खोल दिए गए थे और पांच दिनों तक श्रद्धालु स्वर्णमयी अन्नपूर्णा, मां भूमि देवी, देवी लक्ष्मी और रजत महादेव के दर्शन कर सकेंगे। आज इस मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाएंगे।
स्कन्दपुराण के ‘काशीखण्ड’ में उल्लेख है कि भगवान विश्वेश्वर गृहस्थ हैं और भवानी उनकी गृहस्थी चलाती हैं। अत काशीवासियों के योग-क्षेम का भार इन्हीं पर है। ‘ब्रह्मवैवर्तपुराण’ के काशी -रहस्य के अनुसार भवानी ही अन्नपूर्णा हैं। सामान्य दिनों में अन्नपूर्णा माता की आठ परिक्रमा की जाती है। प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को व्रत रहते हुए अन्नपूर्णा की उपासना का विधान है।