डॉ. जवाहर सुरिसेट्टी ने ‘पढ़ई तुंहर दुआर‘ के माध्यम से बच्चों का किया मोटिवेशन

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रायपुर\राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद रायपुर द्वारा ‘पढ़ई तुंहर दुआर‘ कार्यक्रम के अंतर्गत प्रत्येक शनिवार को सैद्धांतिक विषयों से हटकर विशेष ऑनलाईन कक्षा संचालित की जाती है, जिसमें जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात होती है। विख्यात मनोवैज्ञानिक एवं शिक्षाविद् डॉ. जवाहर सुरिसेट्टी ने ऑनलाईन कक्षा के विषय ‘जीरो से हीरो’ में बच्चों का मोटिवेशन किया।
डॉ. जवाहर सुरिसेट्टी ने कहा कि बच्चों को दैनिक जीवन में वित्तीय जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। संसाधनों में कमी की वजह से बहाने मत बनाइये। अगर सोच में दृढ़ता हो तो सरकार भी उससे सलाह ले सकती है। अगर कोई चीज सीखना हो तो उसके लिए एकलव्य बनना पड़ेगा। फिर कोई एक गुरू बनाना पड़ेगा। अगर सीखने की चाहत है तो जरूर सीखिए। प्रेरणा लेने के लिए कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं, बल्कि अपने घर में ही मिल जाएगी। उन्होंने कोरोना काल की स्थिति में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा बच्चों को पढ़ाई से जोड़े रखने के लिए शुरू की गई पढ़ई तुंहर दुआर जैसी महत्वाकांक्षी योजना की सराहना करते हुए कहा कि इस कार्यक्रम ने बच्चों के अंदर सोचने की एक नई समझ जागृत की है।
डॉ. जवाहर सुरिसेट्टी ने अपने बचपन की कहानी सुनाते हुए बताया कि वे कभी स्कूल नहीं गए। मेरी मां अनपढ़ थी, मेरे पापा 60 रूपए महीने की नौकरी कर रहे थे। हम पांच भाई-बहन थे। मां को केवल इडली बनाना आता था। 8 वर्ष की उम्र की वजह से मुझे कुछ नहीं आता था। मेरी मजबूरी मां की बनाई हुई इडली को बेचना था। फिर मैंने एक जगह का चयन किया, जिसका नाम जगदम्बा जंक्शन था, वहां पहले से ही 11 इडली के ठेले लगते थे 12वां ठेला खाली था उसके मालिक से संपर्क किया तो उसकी पत्नी जो आचार बनाती थी। उसने शर्त रखी कि इडली के साथ आचार भी बेचना होगा। दस आचार का डिब्बा बेचोगे तो एक डिब्बा निःशुल्क रहेगा। दूसरे दिन सुबह 5-6 बजे लोग इडली खाने आते थे। मैंने सोचा लोगों को अलग से क्या दूं तो 11 ठेले पहले से लग रहे हैं। इन सब से अलग करने के लिए इडली के ऊपर बीच में आचार की तरी लगाकर स्पेशल बनाया। इडली का रंग बदल गया और स्वाद भी चटक हो गया। इस तरीके से मेरे ठेले की बिक्री अधिक होने लगी। कहानी का आशय यह है कि अगर घर की स्थिति खराब होने की वजह से मैं रूक जाता तो अनपढ़ बन घुमते रहता। उन्होंने कहा कि इडली बेचते समय मजदूरों और अन्य लोगों से विभिन्न समस्याओं को जानने का अवसर मिला। इसलिए मेरा फैशन मनोविज्ञान था। मैंने बारहवीं की परीक्षा प्राइवेट देकर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करने कलकत्ता गया। मुझे अंग्रेजी नहीं आती थी। एक महिला शिक्षक ने मुझे अंग्रेजी सिखाई। तीन साल लगातार अभ्यास के बाद आज मैं आपके समक्ष अच्छे अंग्रेजी बोल पा रहा हूं। मेरे जीवन में शिक्षकों ने जीने का लक्ष्य दिया, जिसमें एक मेरी अनपढ़ मां और दूसरी महिला जिसने मुझे अंग्रेजी सिखाई। संघर्ष के समय दोनों ने मेरा साथ दिया।

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