डीपीआई से भारत ने पांच दशक के काम को छह वर्षों में पूरा किया

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डिजिटल इंफ्रा के बल पर भारत ने मात्र छह वर्षों में वित्तीय समावेशन में वह मुकाम हासिल किया है जो पांच दशक में हासिल होता।
भारत की अध्यक्षता में हो रहे जी -20 शिखर सम्मेलन से पहले विश्व बैंक द्वारा तैयार जी-20 दस्तावेज़ में भारत की प्रगति की सराहना की गई है।
इसमें कहा गया है कि डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) का भारत पर परिवर्तनकारी प्रभाव पड़ा है, जो समावेशी वित्त से कहीं आगे तक है। विश्व बैंक द्वारा तैयार वित्तीय समावेशन दस्तावेज़ के लिए जी-20 ग्लोबल पार्टनरशिप ने मोदी सरकार के तहत पिछले एक दशक में भारत में डीपीआई के परिवर्तनकारी प्रभाव की सराहना की है।
दस्तावेज़ में मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और डीपीआई परिदृश्य को आकार देने में सरकारी नीति और विनियमन की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।
भारत के डीपीआई दृष्टिकोण की सराहना करते हुए विश्व बैंक के दस्तावेज़ में कहा गया है कि वित्तीय समावेशन में भारत ने केवल छह वर्षों में वह हासिल कर लिया है जो लगभग पाँच दशक में होता।
जेएएम ट्रिनिटी ने वित्तीय समावेशन दर को 2008 में 25 प्रतिशत से बढ़ाकर पिछले छह वर्षों में वयस्कों के 80 प्रतिशत से अधिक कर दिया है, डीपीआई की बदौलत यह 47 साल तक छोटी हो गई है।
दस्तावेज़ में कहा गया है कि इसमें डीपीआई की उपलब्धता पर आधारित अन्य पारिस्थितिकी तंत्र और नीतियां महत्वपूर्ण थीं। इनमें अधिक सक्षम कानूनी और नियामक ढांचा बनाने के लिए हस्तक्षेप, खाता स्वामित्व का विस्तार करने के लिए राष्ट्रीय नीतियां और पहचान सत्यापन के लिए आधार का लाभ उठाना शामिल है।
इसके लॉन्च के बाद से, खोले गए पीएमजेडीवाई खातों की संख्या मार्च 2015 में 14.72 करोड़ से तीन गुना बढ़कर जून 2022 तक 46.2 करोड़ हो गई। इनमें से 56 प्रतिशत यानी 26 करोड़ से अधिक खातों महिलाओं के थे। जन धन प्लस कार्यक्रम कम आय वाली महिलाओं को बचत करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिसके परिणामस्वरूप (अप्रैल 2023 तक) 1.2 करोड़ से अधिक महिला ग्राहक हैं। अनुमान है कि 10 करोड़ कम आय वाली महिलाओं को बचत गतिविधियों में शामिल करके, भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक लगभग 25,000 करोड़ रुपये (3.1 अरब डॉलर) जमा आकर्षित कर सकते हैं।
पिछले दशक में भारत ने डीपीआई का लाभ उठाते हुए दुनिया के सबसे बड़े डिजिटल सरकार से व्यक्ति (जी2पी) भुगतान आर्किटेक्चर में से एक का निर्माण किया है। इसने 53 केंद्र सरकार के मंत्रालयों की 312 प्रमुख योजनाओं के माध्यम से सीधे लाभार्थियों को लगभग 361 अरब डॉलर की राशि के हस्तांतरण का समर्थन किया है। मार्च 2022 तक, इसके परिणामस्वरूप 33 अरब डॉलर की कुल बचत हुई, जो सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 1.14 प्रतिशत के बराबर है।
इसमें यूपीआई का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि अकेले मई 2023 में लगभग 14.89 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 9.41 अरब से अधिक लेनदेन किए गए। वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए यूपीआइ लेनदेन का कुल मूल्य भारत के जीडीपी का लगभग 50 प्रतिशत था।
इसमें कहा गया है कि भारत में डीपीआई ने भारत में व्यवसाय संचालन की जटिलता, लागत और समय में कमी के माध्यम से निजी संगठनों की दक्षता में भी वृद्धि की है। कुछ एनबीएफसी को एसएमई ऋण देने में 8प्रतिशत अधिक दर, मूल्यह्रास लागत में 65 प्रतिशत की बचत और धोखाधड़ी का पता लगाने से संबंधित लागत में 66प्रतिशत की कमी करने में सक्षम बनाया गया है।
उद्योग के अनुमान के अनुसार, डीपीआई के उपयोग से भारत में ग्राहकों को जोड़ने की बैंकों की लागत 23 डॉलर से घटकर 0.1 डॉलर हो गई।
इसमें कहा गया है कि इसने केवाईसी प्रक्रियाओं को डिजिटल और सरल बना दिया है, जिससे लागत कम हो गई है। ई-केवाईसी का उपयोग करने वाले बैंकों ने अपनी अनुपालन लागत 0.12 डॉलर से घटाकर 0.06डॉलर कर दी। लागत में कमी ने कम आय वाले ग्राहकों को सेवा के लिए अधिक आकर्षक बना दिया और नए उत्पाद विकसित करने के लिए मुनाफा कमाया।
इसमें सीमा पार से भुगतान का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि भारत और सिंगापुर के बीच फरवरी 2023 में क्रियान्वित यूपीआई पे नाउ इंटरलिंकिंग, जी 20 की वित्तीय समावेशन प्राथमिकताओं के साथ संरेखित है और तेज़, सस्ता और अधिक पारदर्शी सीमा पार भुगतान की सुविधा प्रदान करती है।
इसमें कहा गया है कि भारत के अकाउंट एग्रीगेटर (एए) फ्रेमवर्क का उद्देश्य भारत के डेटा बुनियादी ढांचे को मजबूत करना है, जिससे उपभोक्ताओं और उद्यमों को इलेक्ट्रॉनिक सहमति ढांचे के माध्यम से केवल उनकी सहमति से अपना डेटा साझा करने में सक्षम बनाया जा सके। यह ढांचा आरबीआई द्वारा विनियमित है। भारत का डेटा सशक्तीकरण और संरक्षण वास्तुकला (डीईपीए) व्यक्तियों को उनके डेटा पर नियंत्रण प्रदान करता है, जिससे वे इसे प्रदाताओं के बीच साझा कर सकते हैं। यह नए प्रवेशकों को पहले से मौजूद ग्राहक संबंधों में भारी निवेश की आवश्यकता के बिना, नवाचार और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए अनुरूप उत्पाद और सेवा पहुंच को बढ़ावा देता है।

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