विश्व बैंक और भारत सरकार ने आज ‘नमामि गंगे कार्यक्रम’ में आवश्यक सहयोग बढ़ाने के लिए एक ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत गंगा नदी का कायाकल्प किया जाना है। द्वितीय राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन परियोजना से पावन गंगा में प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी और इसके साथ ही नदी बेसिन का प्रबंधन सुदृढ़ होगा, जहां 500 मिलियन से भी अधिक लोग निवास करते हैं।
400 मिलियन डॉलर की प्रतिबद्धता में 381 मिलियन डॉलर का ऋण और 19 मिलियन डॉलर तक की प्रस्तावित गारंटी शामिल हैं। 381 मिलियन डॉलर के ऋण से जुड़े समझौते पर आज भारत सरकार की ओर से वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग में अपर सचिव श्री समीर कुमार खरे और विश्व बैंक की ओर से कार्यवाहक कंट्री डायरेक्टर (भारत) श्री कैसर खान ने हस्ताक्षर किए। गारंटी प्रपत्र की प्रोसेसिंग अलग से की जाएगी।
श्री खरे ने कहा कि गंगा निश्चित तौर पर भारत का सबसे अहम सांस्कृतिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय संसाधन है और सरकार के ‘नमामि गंगे कार्यक्रम’ का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि नदी फिर से प्रदूषण मुक्त एवं पारिस्थितिकी दृष्टि से निर्मल बन जाए। नई परियोजना गंगा को स्वच्छ एवं निर्मल नदी बनाने के लिए इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्यक्रम में भारत सरकार और विश्व बैंक की सहभागिता को और भी अधिक बढ़ा देगी।
विश्व बैंक मौजूदा ‘राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन परियोजना’ के जरिए वर्ष 2011 से ही सरकार के प्रयासों में व्यापक सहयोग करता रहा है जिसने नदी के प्रबंधन के लिए प्रमुख एजेंसी के रूप में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) की स्थापना करने में मदद की। विश्व बैंक ने नदी के किनारे स्थित अनेक शहरों और कस्बों में सीवेज के शोधन से जुड़ी अवसंरचना का वित्तपोषण किया।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक श्री राजीव रंजन मिश्रा ने कहा कि द्वितीय राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन परियोजना द्वारा प्रदान की गई निरंतरता दरअसल विश्व बैंक की पहली परियोजना के तहत हासिल की गई गति को और भी अधिक तेज करेगी। इसके साथ ही एनएमसीजी को और भी अधिक नवाचारों को पेश करने और नदी के कायाकल्प में सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं के सापेक्ष अपनी पहलों को चिन्हित करने में मदद मिलेगी।